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न काहू कोई , सुख दुःख दाता , निज कृत कर्म भोग सुन भ्राता।

कर्तुम अकर्तुम अन्यथा कर्तुम   न काहू कोई , सुख दुःख  दाता , निज कृत कर्म भोग सुन भ्राता।  कबीर कहते हैं मनुष्य को करतबी ईश्वर पसंद है जो रिश्वत देने से साध लिया जाए। लड्डू देने से खुश हो जाए। करनी अकरनी ,गरज़ ये के कुछ भी करने की सामर्थ्य रखे है। सो ऐसा ईश्वर मन ने गढ़ लिया है।  कबीर कहते हैं अपनी करनी के लिए मनुष्य स्वयं ही जिम्मेवार है। कोई ईश्वर उसे न दुःख देता है न सुख। करतम सो भोगतम। करोगे सो भरोगे। कबीर वर्णव्यवस्था के प्रपंच पर कटाक्ष करते हैं।   जन्मना जायते शूद्र ,संस्काराद भावेद द्विज ,विद्या ग्रहण ते ,विप्रा विप्रतम ,ब्रह्म जाणात ब्रह्मणा  जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते। शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता ।|31-34|| जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते। वेदाभ्यास भवति विप्र ब्रह्मम जानति ब्राह्मणः|| This shloka is given in  Skanda Purana Vol.18 Book VI , Nagar Kanda , Chapter 239 , ( Efficacy of Adoration , Penance etc.) Verse 31-34 31 :  A Man is no better than a sudra at his birth  .He is called Brahmana (Twice Born) due to t